तापमान का क्षैतिज वितरण

तापमान का क्षैतिज वितरण 1

तापमान का क्षैतिज वितरण

तापमान का क्षैतिज वितरण पृथ्वी की सतह पर तापमान के वितरण को संदर्भित करता है। यह अक्षांश, ऊंचाई, महासागरीय धाराओं, और मौसम प्रणालियों सहित कई कारकों से प्रभावित होता है।

तापमान का क्षैतिज वितरण महत्वपूर्ण है क्योंकि यह जलवायु, पारिस्थितिकी तंत्र, और मानव गतिविधियों को प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, उच्च तापमान वाले क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है, जबकि निम्न तापमान वाले क्षेत्रों में कम वर्षा होती है। यह वर्षा जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती है। इसके अतिरिक्त, तापमान मानव गतिविधियों जैसे कृषि, निर्माण, और पर्यटन को भी प्रभावित करता है।

– तापमान का क्षैतिज वितरण क्या है?तापमान का क्षैतिज वितरण

तापमान का क्षैतिज वितरण का अर्थ है पृथ्वी की सतह पर अक्षांश और देशांतर रेखाओं के आरपार तापमान का वितरण। इसे मानचित्र में समताप रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है।

पृथ्वी की सतह पर तापमान का क्षैतिज वितरण मुख्यतः सूर्यातप से प्रभावित होता है। सूर्य की किरणें भूमध्य रेखा पर सीधी पड़ती हैं, इसलिए भूमध्य रेखा के आसपास के क्षेत्रों में तापमान अधिक होता है। ध्रुवों की ओर जाने पर सूर्य की किरणें अधिक तिरछी पड़ती हैं, इसलिए इन क्षेत्रों में तापमान कम होता है।

तापमान के क्षैतिज वितरण को प्रभावित करने वाले अन्य कारक भी हैं, जिनमें शामिल हैं:

महासागरों का प्रभाव: महासागर स्थल की तुलना में धीरे-धीरे गर्म और धीरे-धीरे ठंडा होते हैं। इसलिए, महासागरों के आसपास के क्षेत्रों में तापमान की भिन्नता स्थल की तुलना में कम होती है।

 महासागरीय धाराएँ: गर्म महासागरीय धाराएँ अपने साथ गर्म जल लाती हैं, जिससे उनके मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों में तापमान बढ़ जाता है। ठंडी महासागरीय धाराएँ अपने साथ ठंडा जल लाती हैं, जिससे उनके मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों में तापमान कम हो जाता है।

 स्थलीय और समुद्री पवनें: स्थलीय पवनें गर्म क्षेत्रों से ठंडे क्षेत्रों की ओर चलती हैं, जिससे उनके मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों में तापमान में कमी आती है। समुद्री पवनें ठंडे क्षेत्रों से गर्म क्षेत्रों की ओर चलती हैं, जिससे उनके मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों में तापमान में वृद्धि होती है।

तापमान के क्षैतिज वितरण का अध्ययन मौसम विज्ञान, जलवायु विज्ञान और भूगोल के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है। इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के मौसम और जलवायु पैटर्न को समझने के लिए किया जाता है।

यहां तापमान के क्षैतिज वितरण के कुछ प्रमुख विशेषताएं दी गई हैं:

  •  भूमध्य रेखा पर तापमान सबसे अधिक होता है।
  •  महासागरों के आसपास के क्षेत्रों में तापमान की भिन्नता स्थल की तुलना में कम होती है।
  • गर्म महासागरीय धाराएँ अपने मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों में तापमान बढ़ाती हैं।
  • ठंडी महासागरीय धाराएँ अपने मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों में तापमान कम करती हैं।
  • स्थलीय पवनें अपने मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों में तापमान कम करती हैं।
  • समुद्री पवनें अपने मार्ग में पड़ने वाले क्षेत्रों में तापमान बढ़ाती हैं।

2. तापमान मापन के उपकरण:

  • तापमान मापन के लिए उपकरणों का वर्णन।

तापमान मापन के लिए कई तरह के उपकरणों का उपयोग किया जाता है। इन उपकरणों को उनके कार्य करने के सिद्धांत के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है।

द्रव तापमापी

द्रव तापमापी सबसे आम प्रकार के तापमापी हैं। इनमें एक द्रव, जैसे पारा या गैलियम, होता है जो एक कांच या प्लास्टिक की नली में होता है। जैसे-जैसे द्रव गर्म होता है, यह फैलता है और नली में ऊपर उठता है। नली में एक पैमाना होता है जो तापमान को मापने के लिए उपयोग किया जाता है।

प्रतिरोध तापमापी

प्रतिरोध तापमापी एक धातु तार या फिल्म होते हैं जिनका प्रतिरोध तापमान के साथ बदलता रहता है। धातु का प्रतिरोध बढ़ता है क्योंकि यह गर्म होता है। प्रतिरोध को एक विद्युत परिपथ में मापा जाता है और तापमान को एक मीटर या डिजिटल डिस्प्ले पर प्रदर्शित किया जाता है।

थर्मिस्टर

थर्मिस्टर एक प्रकार का प्रतिरोध तापमापी होता है जो एक अर्धचालक पदार्थ से बना होता है। थर्मिस्टर का प्रतिरोध तापमान के साथ बहुत तेजी से बदलता है। यह उन्हें बहुत संवेदनशील तापमापी बनाता है।

इलेक्ट्रॉनिक तापमापी

इलेक्ट्रॉनिक तापमापी एक सेंसर का उपयोग करके तापमान को मापते हैं जो तापमान के साथ विद्युतीय प्रतिरोध या धारा में परिवर्तन का कारण बनता है। सेंसर का प्रतिरोध या धारा एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण द्वारा मापा जाता है और तापमान को एक मीटर या डिजिटल डिस्प्ले पर प्रदर्शित किया जाता है।

इनफ्रारेड थर्मामीटर

इनफ्रारेड थर्मामीटर एक उपकरण है जो किसी वस्तु से निकलने वाले अवरक्त विकिरण को मापता है। अवरक्त विकिरण तापमान के साथ बदलता रहता है। इनफ्रारेड थर्मामीटर का उपयोग ठोस, तरल और गैसों के तापमान को मापने के लिए किया जा सकता है।
तापमान मापने के लिए उपयोग किए जाने वाले उपकरणों की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है। उपकरण का चयन मापने के लिए आवश्यक तापमान की सीमा, माप की सटीकता और उपयोग के लिए उपयुक्तता पर निर्भर करता है।

उपकरणों के प्रकारों के आधार पर तापमान मापने के कुछ उदाहरण:

द्रव तापमापी का उपयोग अक्सर सामान्य उपयोग के लिए किया जाता है, जैसे कि मौसम की भविष्यवाणी करना या शरीर का तापमान मापना।

प्रतिरोध तापमापी का उपयोग अक्सर औद्योगिक प्रक्रियाओं में किया जाता है, जैसे कि भट्ठियों और ओवन के तापमान को नियंत्रित करना।

थर्मिस्टर का उपयोग अक्सर छोटे तापमान अंतर को मापने के लिए किया जाता है, जैसे कि इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों में।

इलेक्ट्रॉनिक तापमापी का उपयोग अक्सर उच्च सटीकता के साथ तापमान को मापने के लिए किया जाता है, जैसे कि अनुसंधान और विकास में।

इनफ्रारेड थर्मामीटर का उपयोग अक्सर बिना संपर्क के तापमान को मापने के लिए किया जाता है, जैसे कि लोगों या वस्तुओं के शरीर के तापमान को मापने के लिए।

 

3. तापमान के प्रमुख अंश:

– विद्युत तापमान,

विद्युत तापमान एक ऐसा माप है जो किसी चालक के माध्यम से बहने वाली विद्युत धारा के कारण उत्पन्न होने वाले ताप को मापता है। इसे आमतौर पर डिग्री सेल्सियस या डिग्री फ़ारेनहाइट में व्यक्त किया जाता है।

विद्युत तापमान का उपयोग विभिन्न अनुप्रयोगों में किया जाता है, जैसे कि विद्युत उपकरणों के तापमान को नियंत्रित करने के लिए, विद्युत ऊर्जा के नुकसान को मापने के लिए, और विद्युत प्रवाह के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए।

अवक्षेप

अवक्षेप किसी तरल पदार्थ से किसी ठोस पदार्थ का परिवर्तन है। यह एक सामान्य मौसम संबंधी घटना है जो वर्षा, हिमपात, या ओलावृष्टि के रूप में हो सकती है।

अवक्षेप का उपयोग विभिन्न अनुप्रयोगों में किया जाता है, जैसे कि जल आपूर्ति, सिंचाई, और जलविद्युत उत्पादन।

अन्य तापमान संबंधित मापदंड

विद्युत तापमान और अवक्षेप के अलावा, अन्य तापमान संबंधित मापदंडों में शामिल हैं:

तापमान – किसी वस्तु या पदार्थ का तापमान उसकी आंतरिक ऊर्जा का एक उपाय है। इसे आमतौर पर डिग्री सेल्सियस या डिग्री फ़ारेनहाइट में व्यक्त किया जाता है।

तापमान प्रवणता – तापमान प्रवणता किसी बिंदु से दूसरे बिंदु तक तापमान में परिवर्तन की दर है। इसे आमतौर पर डिग्री सेल्सियस प्रति मीटर या डिग्री फ़ारेनहाइट प्रति फीट में व्यक्त किया जाता है।

ताप क्षमता – ताप क्षमता किसी पदार्थ के तापमान को एक डिग्री बढ़ाने के लिए आवश्यक ऊर्जा की मात्रा है। इसे आमतौर पर जूल प्रति किलोग्राम या कैलोरी प्रति ग्राम में व्यक्त किया जाता है।

उष्मा चालकता – उष्मा चालकता किसी पदार्थ के माध्यम से ऊष्मा के प्रवाह की दर है। इसे आमतौर पर वाट प्रति मीटर केल्विन या वाट प्रति फीट डिग्री फ़ारेनहाइट में व्यक्त किया जाता है।

ये मापदंड मौसम विज्ञान, भौतिकी, रसायन विज्ञान, और इंजीनियरिंग सहित विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण हैं।

4. विभिन्न स्थानों पर तापमान का विवेचन:

उत्तर-दक्षिण और पश्चिम-पूर्व क्षेत्रों में तापमान की विविधता।

भारत की जलवायु में उत्तर-दक्षिण और पश्चिम-पूर्व क्षेत्रों में तापमान की विविधता देखने को मिलती है। इसका मुख्य कारण है भारत की भौगोलिक स्थिति और जलवायु पर पड़ने वाले प्रभाव।

उत्तर-दक्षिण दिशा में तापमान की विविधता

भारत के उत्तरी भाग में हिमालय पर्वत स्थित है। यह पर्वत श्रृंखला भारत को उत्तरी ध्रुव से आने वाली ठंडी हवाओं से बचाती है। इस कारण भारत के उत्तरी भाग में तापमान दक्षिणी भाग की तुलना में कम रहता है। उदाहरण के लिए, दिल्ली में औसत तापमान 25 डिग्री सेल्सियस होता है, जबकि चेन्नई में औसत तापमान 33 डिग्री सेल्सियस होता है।

पश्चिम-पूर्व दिशा में तापमान की विविधता

भारत के पश्चिमी भाग में अरब सागर स्थित है। यह सागर भारत को पश्चिमी एशिया से आने वाली गर्म हवाओं से प्रभावित करता है। इस कारण भारत के पश्चिमी भाग में तापमान पूर्वी भाग की तुलना में अधिक रहता है। उदाहरण के लिए, जयपुर में औसत तापमान 32 डिग्री सेल्सियस होता है, जबकि कोलकाता में औसत तापमान 28 डिग्री सेल्सियस होता है।

तापमान की विविधता के कारण

भारत की जलवायु में तापमान की विविधता के निम्नलिखित कारण हैं:

भूगोल: भारत की भौगोलिक स्थिति और जलवायु पर पड़ने वाले प्रभाव।

समुद्र का प्रभाव: भारत के पश्चिमी तट पर अरब सागर और पूर्वी तट पर बंगाल की खाड़ी स्थित है। ये समुद्र भारत की जलवायु को प्रभावित करते हैं।

पवनों का प्रभाव: भारत में विभिन्न दिशाओं से आने वाली पवनें तापमान को प्रभावित करती हैं।

ऊंचाई का प्रभाव: भारत के कुछ क्षेत्र समुद्र तल से अधिक ऊंचाई पर स्थित हैं। ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान कम होता जाता है।

तापमान की विविधता के प्रभाव

भारत की जलवायु में तापमान की विविधता के निम्नलिखित प्रभाव हैं:

फसलों पर प्रभाव: तापमान की विविधता फसलों की वृद्धि और विकास को प्रभावित करती है।

वनस्पति और जीव-जंतुओं पर प्रभाव: तापमान की विविधता वनस्पति और जीव-जंतुओं के जीवन को प्रभावित करती है।

मानव जीवन पर प्रभाव: तापमान की विविधता मानव जीवन को भी प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, गर्मियों में तापमान बढ़ने के कारण लोगों को गर्मी से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

 

5. समय के परिवर्तन का प्रभाव:

– दिन-रात के और ऋतुओं के आधार पर तापमान के वितरण में परिवर्तन।
दिन-रात के आधार पर तापमान का वितरण

सूर्य के प्रकाश के कारण दिन के समय पृथ्वी का तापमान बढ़ता है और सूर्यास्त के बाद घटता है। यह परिवर्तन दिन और रात के तापमान में अंतर के रूप में देखा जाता है।
भारत में, दिन का तापमान औसतन 25 से 35 डिग्री सेल्सियस के बीच होता है। गर्मियों में, तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है, जबकि सर्दियों में, तापमान 10 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है।

दिन के तापमान में परिवर्तन निम्नलिखित कारकों से प्रभावित होता है:

सूर्य के प्रकाश की तीव्रता: सूर्य का प्रकाश जितना अधिक तीव्र होगा, पृथ्वी का तापमान उतना ही अधिक बढ़ेगा।

पृथ्वी की स्थिति: पृथ्वी की स्थिति सूर्य के सापेक्ष तापमान को भी प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए, जब पृथ्वी सूर्य के सबसे करीब होती है, तो तापमान अधिक होता है।

वायुमंडलीय परिस्थितियां: बादल, धूल और अन्य वायुमंडलीय कण सूर्य के प्रकाश को परावर्तित कर सकते हैं, जिससे तापमान कम हो सकता है।

रात के तापमान में परिवर्तन निम्नलिखित कारकों से प्रभावित होता है:

सूर्य के प्रकाश की अनुपस्थिति: सूर्य के प्रकाश की अनुपस्थिति में, पृथ्वी का तापमान धीरे-धीरे कम होता जाता है।

वायुमंडलीय परिस्थितियां: बादल, धूल और अन्य वायुमंडलीय कण रात में पृथ्वी से गर्मी को अवशोषित कर सकते हैं, जिससे तापमान कम हो सकता है।

ऋतुओं के आधार पर तापमान का वितरण

पृथ्वी की सूर्य के चारों ओर परिक्रमा के कारण, पृथ्वी के विभिन्न भागों में विभिन्न ऋतुएं होती हैं। ऋतुओं के परिवर्तन से तापमान में भी परिवर्तन होता है।
भारत में, गर्मियों में तापमान अधिकतम होता है, जबकि सर्दियों में तापमान न्यूनतम होता है। मानसून के मौसम में, तापमान अपेक्षाकृत कम होता है।
भारत में ऋतुओं के आधार पर तापमान का वितरण निम्नलिखित है:

ग्रीष्मकाल (मार्च से जून तक): गर्मियों में, सूर्य की किरणें सीधी भारत के उत्तरी भाग पर पड़ती हैं। इस कारण, उत्तरी भारत में तापमान अधिकतम होता है। इस मौसम में, तापमान 45 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है।

मानसून (जुलाई से सितंबर तक): मानसून के मौसम में, भारत में भारी बारिश होती है। बारिश के कारण, तापमान अपेक्षाकृत कम होता है। इस मौसम में, तापमान 30 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।

शरद ऋतु (अक्टूबर से दिसंबर तक): शरद ऋतु में, सूर्य की किरणें भारत के उत्तरी भाग पर अधिक सीधी नहीं पड़ती हैं। इस कारण, उत्तरी भारत में तापमान कम होता है। इस मौसम में, तापमान 25 डिग्री सेल्सियस तक रहता है।

सर्दी (जनवरी से फरवरी तक): सर्दी में, सूर्य की किरणें भारत के उत्तरी भाग पर सबसे कम सीधी पड़ती हैं। इस कारण, उत्तरी भारत में तापमान न्यूनतम होता है। इस मौसम में, तापमान 10 डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है।

भारत में तापमान के वितरण में परिवर्तन से कृषि, उद्योग और लोगों के जीवन पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। गर्मियों में तापमान अधिक होने से कृषि फसलों को नुकसान हो सकता है। सर्दियों में तापमान कम होने से उद्योगों को परेशानी हो सकती है। लोगों को भी गर्मियों और सर्दियों में तापमान के कारण स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

6 विज्ञानिक अध्ययन और नतीजे:

– तापमान के क्षैतिज वितरण का अध्ययन

पृथ्वी की सतह पर तापमान का वितरण एक जटिल प्रक्रिया है जो कई कारकों से प्रभावित होता है, जिनमें सूर्यातप, वायुमंडलीय परिसंचरण, महासागरीय धाराएं, भू-आकृति विज्ञान और वनस्पति शामिल हैं। तापमान के क्षैतिज वितरण का अध्ययन भूगोल, मौसम विज्ञान और जलवायु विज्ञान के महत्वपूर्ण विषयों में से एक है।

अक्षांशीय वितरण

तापमान के क्षैतिज वितरण का सबसे प्रमुख कारक सूर्यातप है। सूर्य की किरणें पृथ्वी की सतह पर क्षैतिज रूप से फैलती हैं, इसलिए अक्षांश के साथ सूर्यातप की मात्रा में भिन्नता होती है। भूमध्य रेखा पर सूर्य की किरणें सीधे पड़ती हैं, इसलिए यहाँ तापमान सबसे अधिक होता है। ध्रुवों की ओर जाने पर सूर्य की किरणें अधिक तिरछी पड़ती हैं, इसलिए यहाँ तापमान कम होता है।

उच्चता के साथ तापमान में कमी

तापमान के क्षैतिज वितरण पर ऊँचाई का भी प्रभाव पड़ता है। ऊँचाई बढ़ने के साथ-साथ वायु का घनत्व कम होता जाता है, जिससे वायु का तापमान भी कम होता जाता है। इस प्रक्रिया को तापमान की सामान्य ह्रास दर कहा जाता है। औसतन, ऊँचाई में प्रत्येक 100 मीटर की वृद्धि के साथ तापमान लगभग 0.6 डिग्री सेल्सियस कम होता है।

महासागरों का प्रभाव

महासागर पृथ्वी की सतह के लगभग 71% हिस्से को ढँके हुए हैं। महासागरों में जल का तापमान धीमी गति से बदलता है, इसलिए वे तापमान के क्षैतिज वितरण को स्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। महासागरीय धाराएं भी तापमान के वितरण को प्रभावित करती हैं। गर्म महासागरीय धाराएं उच्च अक्षांशों पर तापमान बढ़ाती हैं, जबकि ठंडी महासागरीय धाराएं निम्न अक्षांशों पर तापमान कम करती हैं।

भू-आकृति विज्ञान का प्रभाव

भू-आकृति विज्ञान भी तापमान के वितरण को प्रभावित करता है। पहाड़, घाटियाँ और मैदान तापमान को वितरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। पहाड़ों में वायु ऊपर उठती है और ठंडी हो जाती है, जिससे पहाड़ों के ढलान पर तापमान कम होता है। घाटियों में वायु नीचे जाती है और गर्म हो जाती है, जिससे घाटियों के तल पर तापमान अधिक होता है। मैदानों में वायु अधिक समान रूप से फैली होती है, इसलिए मैदानों में तापमान का वितरण अधिक समरूप होता है।

वनस्पति का प्रभाव

वनस्पति भी तापमान के वितरण को प्रभावित करती है। वनस्पति सूर्य की किरणों को परावर्तित करती है, जिससे वातावरण में ऊष्मा का अवशोषण कम होता है। इसके अलावा, वनस्पति वाष्पोत्सर्जन द्वारा वातावरण में जलवाष्प की मात्रा को बढ़ाती है, जिससे वायु का तापमान कम होता है।

तापमान के क्षैतिज वितरण का महत्व

तापमान के क्षैतिज वितरण का कई क्षेत्रों में महत्व है। यह मौसम विज्ञान, कृषि, जलवायु विज्ञान और पर्यावरण प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

मौसम विज्ञान में, तापमान के क्षैतिज वितरण का उपयोग मौसम की भविष्यवाणी करने के लिए किया जाता है।

कृषि में, तापमान के क्षैतिज वितरण का उपयोग उपयुक्त फसलों का चयन करने और फसलों की सिंचाई के लिए किया जाता है।

जलवायु विज्ञान में, तापमान के क्षैतिज वितरण का उपयोग जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए किया जाता है।

पर्यावरण प्रबंधन में, तापमान के क्षैतिज वितरण का उपयोग पर्यावरणीय समस्याओं का अध्ययन करने के लिए किया जाता है।

 

 

 

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